गजस्थल के 500 साल पुराना शिव महाकाली मंदिर में भर जाती है भक्तों की झोली

अमरोहा। भूदेव भगलिया

उत्तर प्रदेश के जनपद अमरोहा के नौगावां सादात थाना क्षेत्र के गजस्थल स्थित शिव महाकाली मंदिर का यह प्राचीन मंदिर अपने आप में बहुत ही प्रसिद्ध है। इस मंदिर की जगह करीब 500 सौ साल पूरानी है। यहां जो लोग अपने मनोकामना करते है उनकी पूरी हो जाती है। 

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मंदिर का इतिहास

गजस्थल गांव के 52 बीघा के परिसर वाले इस मंदिर की ऊपरी सतह पर चढ़कर गंगा मैया की पावन धारा के दर्शन होते हैं। यहां प्रत्येक सोमवार को मेला लगता है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु महाकाली के दर्शन करने आते हैं।

किंवदंती है दशकों पहले नौगावां सादात क्षेत्र के जंगल में हाथियों के झुंड रहा करते थे, इसी कारण इस गांव का गजस्थल यानि हाथियों का स्थान पड़ गया। समिति के अध्यक्ष मास्टर बाबूराम यादव ने बताया कि सुना है कि गांव का मुस्लिम युवक जंगल में घास काट रहा था, उसी दौरान उसकी खुरपी किसी पत्थर से टकराई, उसे खोद कर देखा गया तो वहां पर शिवलिंग मौजूद था, गहराई से खोदने पर वहां शिवलिंग प्रकट हो गया तथा वहां से दूध की धारा बह निकली। 

उसी दिन से ग्रामीणों ने यहां पर मंदिर की स्थापना कर दी। उसके बाद काशीपुर से मां काली मंदिर से ज्योति लाई गई, यहां मंदिर में रखी गई। यहीं मां कालिका देवी मूर्ति की स्थापना कर दी गई। इसके बाद से यहां मेला लगना शुरू हो गया। वैसे गजस्थल गांव कई बार मंदिर से चारो तरफ बसा व उजड़ा, पर यह मंदिर लोगों की आस्था का केन्द्र बनता गया। 

श्री शिव मंदिर कालिका देवी मंदिर समिति के प्रबंधक बाबूराम यादव कहते हैं कि यह मंदिर जिले में ही नहीं बल्कि समूचे मंडल का सबसे प्राचीन मंदिर है। गांव की बस्ती से करीब तीन सौ मीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर जमीनी सतह से डेढ़ सौ फीट के ऊंचे रेत के टीले पर बना है। इसकी ऊंचाई भी अस्सी फीट है। मंदिर की चोटी पर चढ़ कर यहां से 30 किलोमीटर दूरी स्थित गंगा मैया की पावन धारा के दर्शन किए जा सकते थे। 

इसी गांव के गोकल सिंह ने बताया कि प्राचीन काल के इस मंदिर का परिसर 52 बीघा का है, उसमें शिवलिंग, नंदी, काली मां, शंकर, हनुमान आदि देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। प्रत्येक सोमवार को मंदिर में बड़ा मेला लगता है। नवरात्रों में प्रत्येक दिन लोग यहां आकर प्रसाद चढ़ाते है। 

श्रद्धालुओं के लिए बनी धर्मशाला  मंदिर में देवी देवताओं के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के लिए ठहराव की उचित व्यवस्था की गई है। यहां धर्मशाला का निर्माण कराया गया है। शारदीय नवरात्रों में रामलीला का आयोजन भी किया जाता है। 

मनोकामना होती है पूरी

यहां पर पूजा-अर्चना करने से भक्तों की मनोकामना भी पूरी होने लगी तो धीरे-धीरे भीड़ बढ़ने लगी। कहा जाता है कि मां की पूजा-करने से आसुरी शक्तियां, टोने-टोटके दूर होने लगे तो इस मूर्ति के प्रति लोगों में अटूट श्रद्धा बन गई।  अन्य राज्यों के लोग यहां मां का आशीर्वाद लेने पहुंचते 

मां को चढ़ाते हैं चुनरी और नारियल

प्रत्येक सोमवार को मां कालिका देवी को श्रद्धालु चुनरी, शृंगार का सामान और नारियल चढ़ाते हैं और उनके सामने दीपक जलाते हैं। कोई विशेष कामना हो तो यहां धागा भी बांधते हैं और पूजा-अर्चना के बाद रात को दस बजे ढोल-नगाड़ों के साथ होने वाली महाआरती में शामिल होते हैं। मान्यता है कि उन पर मां काली की कृपा होती है।

सामान्य दिनों में जो मां से सच्चे मन से मांगता है, देवी जरूर पूरी करती हैं। पुजारिन श्रीति कहती हैं कि जादू, टोने और ऊपरी साये की समस्याएं मां काली देवी के मंदिर में प्रवेश करते ही दूर हो जाती हैं।

मां हर लेती हैं भक्तों के कष्ट

यहां केवल शहरी नहीं बल्कि बाहरी शहरों से भी भक्त मां के दर्शन करने आते हैं। मंदिर में जिसने भी पूरे विधि विधान से मां का गुणगान किया है और मां की महाआरती में उनका वंदन किया उसकी मनोकामना महाकाली अवश्य पूरी करती हैं। वे कहती हैं कि मंदिर में लोग मां को चुनरी और नारियल भी चढ़ाते हैं। मां अपने भक्तों के कष्टों को हरकर उन्हें सुख, शांति व समृद्धि से आच्छादित करती हैं।

नवरात्र में होता है विशेष शृंगार  

दुर्गा मां के नवरात्रों में मंदिर में मां काली का भव्य शृंगार किया जाता है। यह विशेष शृंगार होता है, जिसमें पूरे मनोयोग से पूरी मंडली कार्य करती है। सुबह शृंगार के बाद आरती होती है। इसके साथ ही रोजना रात दस बजे नगाड़ों के साथ महाकाली की स्पेशल आरती की जाती है। इस आरती का अपना विशेष महत्व माना जाता है। सप्तमी, अष्टमी और नवमी पर मंगल आरती व भंडारा किया जाता है।

अमरोहा से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर है मंदिर

अन्य शहरों से आने वाले भक्त अपनी निजी सवारी से आते है यहां पहुंचने के लिये अमरोहा से नौगावां को रोडवेज बस से आते है। यहां से टैंपो मिल जाते है।