Social Media : सोशल मीडिया की चमक में फंसकर ब्लैकमेल का शिकार होती लड़कियां

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दुष्यत कुमार, ब्यूरो चीफ अमरोहा

social media :तकनीक के युग में दोस्त करने का ढ़ग बदलता जा रहा है। आज सोशल मीडियाsocial media के नाम पर कई माध्यम आ गये है। जिस पर अपनी बोरियत दूर करने के लिये दोस्त बनाये जाते है।

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आज फेसबुक लड़कियों को फंसाने का सब से बड़ा और आसान तरीका बन गया है। सैंकड़ों अकेली लड़कियां बोरियत दूर करने के लिए लडक़ों को फ्रैंड बना लेती हैं जो दिखने में अच्छेे लगते हैं और मैसेज भेजने की कला जानते हैं।

बीते दिनों राजधानी में दिल्ली की एक 16 वर्ष की लडक़ी ऐसे ही फंसी और एक अनजान युवक से मिलती ही नहीं रही उस से प्रैग्नैंट भी हो गई। उस लडक़ी को लडक़े की शक्ल और फेसबुक प्रोफाइल के अलावा कुछ नहीं मालूम था और जब तक उसे पता चला कि वह प्रैग्नैंट वह लडक़ा कहीं और हाथ मारने चला गया था।

यह लडक़ा अब पुलिस वालों द्वारा उसे उसी के बनाए ट्रैप के कारण पकड़ा गया है । पीड़िता तो जिंदगी भर एक दाग लिए घूमेगी। फेसबुक की पहुंच ही ऐसी नहीं है कि लाखों इस के जाल में फंस रहे हैं, यह शातिरों को पहचान कर उन के नाम उन तक पहुंचा सकता है जो भोलेभाले हैं।

 

फेसबुक बारबार कहना शुरू कर देता है कि इतने सारे लोग आप से दोस्ती कर सकते हैं और कोई भी साधारण जना ट्रैप में फंस कर 4-5 या 8-10 को फ्रैंड बना लेता है और फिर चस्का पड़ जाता है कि जितने ज्यादा फ्रैंड बनाओ। इस चक्कर में तरह-तरह की पिक्चर्स डाली जाती है, तरह-तरह की झूठी कहानियां सुनाई जाती हैं।

जिन के ज्यादा फ्रैंड होते हैं उन में कुछ भोले होते हैं तो ज्यादातर बेहद चालाक। पहले इन चालाक लोगों के हत्थे कुल 10-20 लोग चढ़ते थे अब वे सैंकड़ों तक पहुंच सकते हैं। रातदिन अपने अनजान फैसबुक फ्रैंडों को अपना सगा मान लेने वाली लड़कियों की कमी नहीं जो हर कुछ करने को तैयार हैं। पहले वे अपने बारे में बताती हैं, फिर ऑनलाइन वीडियो चौट पर कपड़े उतारती हैं और फिर ब्लैकमेल होना शुरू हो जाती हैं।

फेसबुक का असली लाभ ये लोग उठा रहे हैं। घरों में बंद लोगों के लिए यह खिडक़ी पर बाहर जहरीले कांटे हैं या गहरी खाई है और कितने ही उस में डुबकी लगा लेते हैं।

हमारे समाज में माता-पिता ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। जो समझते हैं वे भी अपने बड़े होते बच्चों के उद्वंड व्यवहार को नियंत्रित नहीं कर सकते। पहले उन को गतिविधियों के बारे में दूसरों से कुछ पता तो चल जाता था पर अब तो मोबाइल या कंप्यूटर इतना निजी हो चला है कि उस में झांकना भी मुश्किल है।

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