स्त्री हूं मैं, जिम्मेदारी के बोझ तले दबी हूं…
स्त्री हूं मैं, जिम्मेदारी के बोझ तले दबी हूं,उड़ना भी चाहूं, पर क्या करू अब थकी हूं।आखिर यह सब करके क्या पाया,जिसको अपना माना उसी ने ठुकरायासब खोकर मैंने आज ये जानाजिस के लिए तुम मरते हो वो ही है बेगानाबार -बार अपने दिल को समझाती हूं,न कर समझोता फिर भी न जाने क्यों उसी …