Mayawati Birthday Spacial: दलितों कार गौरव कही जाने वाली बसपा सुप्रीमों मायावती का आज जन्मदिन है। जब मायावती (Mayavati) पहली बार 1995 में भारत के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं तो पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव (Former Prime Minister PV Narasimha Rao) ने इसे लोकतंत्र का चमत्कार बताया था। बहरहाल 1995 में उनका मुख्यमंत्री का बने रहने का सफर ज्यादा लंबा नहीं रहा उनकी सरकार सिर्फ चार महीने ही चल पाई थी। लेकिन चार महीने में ही बहिन जी ने उत्तर प्रदेश की जनता के दिलो दिमाग पर जो छाप छोड़ी उसे जनता भूल नहीं सकी और 2007 में जनता ने बसपा का पूर्ण बहुमत देकर फिर से मुख्यमंत्री बनाया और बहिन जी शेरनी की तरह पूरे पांच साल उत्तर प्रदेश में राज किया।
अगर बात करें तो काशीराम के एक वक्तव्य ने मायावती के जीवन की दशा और दिशा दोनों को बदलकर रख दिया 80 के दशक में काशीराम दलितों की रातनीति में एक बड़ा चेहरा हुआ करते थे दिल्ली में हुए एक सम्मेलन में कांशीराम जी ने जब मायावती को एक मंच के माध्यम से बोलते हुए सुना तो वह समझ गए किए यह लड़की समाज के लिए कुछ खास कर सकती है। इसके तुरंत बाद ही काशीराम जी मायावती से मिलने पहुंच गए उस समय मायावती सिविल सेवा की तैयारी कर रही थी। जब काशीराम जी उनसे मिलने गए तो वह पढ़ाई में लीन थी तब काशीराम ने उनसे पहुंचा कि तुम क्या कर रही हो तब मायावती का जवाब था कि पढाई कर रही हूं, फिर काशी राम ने कहा कि पढ़कर क्या करोगी आइएस बन कर समाज की सेवा करूगी तब काशीराम जी ने कहा अगर समाज की सेवा करनी है तो डीएम नहीं सीम बनने की सोचो, तभी से मायावती के दिलोदिमाग में काशीराम जी की यह बात पूरी तरह से बैठ गई और वह तभी से उत्तर प्रदेश की राजनीति में पूरी तरह से सक्रिया हो गईं।
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मायावती ने अपनी मेहनत से उच्च शिक्षा हासिल की। उन्होंने 1975 में दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिंदी कॉलेज से बीए पास किया। इसके बाद उन्होंने भारतीय संविधान और कानून का ज्ञान प्राप्त करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय से लॉ की डिग्री प्राप्त की। मायावती ने सिविल सेवा की तैयारी के दौरान दिल्ली में एक शिक्षक के रूप में काम किया। इस दौरान मायावती दलित नेता कांशी राम से संपर्क में आईं, जो मायावती को बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) का हिस्सा बनाना चाहते थे। मायावती पार्टी के आदर्शों से अत्यधिक प्रभावित थीं इसलिए वह बसपा से चुनाव लड़ीं और 1989 में पहली बार संसद सदस्य बनीं।
मायावती का पूरा ध्यान भारत में अनुसूचित जातियों और जनजातियों की स्थिति में सुधार करना था। मायावती जून 1995 में पहली बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। हालांकि, मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल चार महीने बाद ही समाप्त हो गया। बसपा ने 2007 में पूर्ण बहुमत प्राप्त किया और पहली बार पूरे पांच साल के लिए यूपी की मुख्यमंत्री बनीं। हालांकि पिछले कुछ सालों से मायावती की सक्रियता कम हुई है जिसका खामियाजा बसपा को उठाना पड़ा है लेकिन उनके समर्थकों को पूरा भरोसा है कि ‘बहन जी’ पूरे दमखम के साथ लौटेंगी।
अगर बात करें तो आज भी मायावती की एक आवज पर पूरा दलित समाज एक जुट हो जाता है। जितनी भी मायावती की रैलियों होती उनमें रिकार्ड भीड़ एकत्र हो जाती है। उनके समर्थक मानते है कि भले कि मायावती पिछले कुछ चुनावों में अच्छा प्रदर्शन न कर पाई हो लेकिन आने वाले विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में वह फिर से पूरी ताकत के साथ वापसी करेंगीं। अपने जन्मदिन पर मायावती ने यह कहकर फिर से जोश भरने का काम किया है कि वह आने वाले चुनावो में किसी भी दल से गठबंधन नहीं करेगी और अकेली चुनाव लड़ेगी इससे विपक्षी खेमों में भी हलचल मच गई है।