Amroha : प्यार में अंधी शबनम ने अपने ही परिवार के सात लोगों की जिंदगी एक ही रात में खत्म कर दी। वह जितना सलीम से प्यार करती थी उसे कहीं ज्यादा अपने परिवार वालों से नफरत, क्योंकि घरवाले शबनम के और सलीम के प्रेम संबंध में बाधा बन रहे थे। हत्या करने के बाद जिस तरह शबनम रो रही थी, किसी ने नहीं सोचा था कि वह हत्यारी हो सकती है.
जब राज खुला तो लोगों के होश उड़ गए. एक बेटी ने ही अपनों को मौत के घाट उतार दिया था। मामले में शबनम को दोषी पाया गया और उसे फांसी की सजा दे दी गई।
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Amroha मर्डर केस को आज भी लोग याद करते हैं
अमरोहा मर्डर केस को आज भी लोग याद करते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं बावनखेड़ी गांव के लोग आजतक उस रात को नहीं भुला पाए हैं।बीते कई महा पहले जिला जज के निर्देश पर सरकारी वकील ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट में सौंपी थी। जिसमें बताया गया है था कि शबनम की एक दया याचिका राज्यपाल के पास लंबित है। वहीं शबनम के वकील ने फांसी की सजा टालने के लिए तीन मजबूत दलीलें अदालत में पेश की हैं। वैसे भी फांसी से बचने के लिए शबनम अलग-अलग पैंतरे अपना रही है।
सविधान में एक ऐसा भी प्रवाधान है कि अगर कोई प्रार्थना पत्र या याचिका लंबित होती है तो डेथ वारंट जारी नहीं किया जा सकता है, ऐसा नियम है. दया याचिका सिर्फ दो बार दायर करने का अधिकार होता है। राष्ट्रपति पहले ही शबनम की एक दया याचिका खारिज कर चुके हैं लेकिन दूसरी दया याचिका राज्यपाल के पास लंबित है। आखिर वो तीन दलीलें कौन सी हैं जो शबनम को फांसी से बचा सकती हैं?
2008 में अप्रैल की एक उमस भरी सुबह थी, जब उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले का बावनखेड़ी गांव कराह रहा था. शौकत अली की बेटी शबनम रोते-चिल्लाते हुए घर-घर दौड़ी. उसको चिल्लाते देख जैसे ही पड़ोसी मौके पर पहुंचे, वे दस महीने के बच्चे सहित परिवार के सात सदस्यों के शव फर्श पर पड़े देखकर चौंक गए. मृतकों में शबनम के पिता शौकत अली (55), मां हाशमी (50), बड़े भाई अनीस (35), अनीस की पत्नी अंजुम (25), छोटा भाई राशिद (22), चचेरी बहन राबिया (14) और अनीस का 10 महीने का बेटा अर्श शामिल थे. सैफी मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाली शबनम ने शुरू में दावा किया कि अज्ञात हमलावरों ने उसके घर में घुसकर सभी को मार डाला.
जहर मिला हुआ दूध पिलाया फिर कुल्हाड़ी से काट डाला
हालांकि, जब पुलिस ने उससे पूछताछ की, तो वह इस बात का संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई कि वह हमलावरों से कैसे बची. सलीम के साथ शबनम के रिश्ते को लेकर भी गांव में सुगबुगाहट शुरू हो गई थी, जिसका उसके परिवार वालों ने कड़ा विरोध किया था. आखिरकार पांच दिनों की पूछताछ के बाद शबनम टूट गई और उसने कबूल किया कि उसने और उसके प्रेमी सलीम ने उसके परिवार को मार डाला था. उसने पुलिस को बताया कि उसने अपने परिवार के सदस्यों को अपने प्रेमी के साथ मारने से पहले जहर मिला हुआ दूध पिलाया था.
दरिंदगी की रात 10 माह के बच्चे समेत परिवार के सात सदस्यों की कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर दी गई. सलीम ने कुल्हाड़ी से उनके सिर काट डाले, जबकि शबनम ने उनके बाल पकड़ रखे थे. उसने अपने 10 महीने के भतीजे का गला दबा दिया. अपने परिवार के बाकी सदस्यों की मृत्यु के साथ, शबनम घर और अन्य संपत्ति की एकमात्र वारिस होती.
प्रॉपर्टी के एंगल से भी हुई थी जांच
अपराध के पांच दिन बाद जब शबनम और सलीम को गिरफ्तार किया गया, तब वे दोनों 20 वर्ष के थे और शबनम सात सप्ताह की गर्भवती थी. बाद में 2008 में उसने एक बेटे को जन्म दिया.
अंग्रेजी और भूगोल में स्नातकोत्तर शबनम ने शिक्षा मित्र (सरकारी स्कूल शिक्षक) के रूप में काम किया था. उसका परिवार सलीम के साथ उसके रिश्ते का विरोध कर रहा था, जो कक्षा 4 में पढ़ाई छोड़ चुका था, जो अपने घर के बाहर लकड़ी काटने की इकाई में काम करता था और पठान समुदाय से ताल्लुक रखता था.
श्मुकदमे के दौरान दोनों एक-दूसरे के खिलाफ हो गए थे
दिलचस्प बात यह है कि मुकदमे के दौरान दोनों एक-दूसरे के खिलाफ हो गए. 2015 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि धारा 313 के अपने बयान में, शबनम ने कहा कि सलीम ने छत के रास्ते चाकू से घर में प्रवेश किया और सोते समय उसके परिवार के सभी सदस्यों को मार डाला. वहीं दूसरी ओर, सलीम ने कहा कि वह शबनम के अनुरोध पर घर पहुंचा और जब वह वहां पहुंचा, तो उसने दूसरों को मारने की बात कबूल की.
वकील ने दी तीन दलीलें
1. शबनम के बेटा
अपनी दलील में शबनम ने 12 साल के बेटे ताज का भी हवाला दिया है. जब शबनम ने इस जघन्य घटना को अंजाम दिया था तब वो प्रेग्नेंट थी। शबनम ने जेल में ही बेटे को जन्म दिया था। जन्म के बाद 6 साल 7 महीने तक बेटा मां शबनम के साथ जेल में ही रहा. वहीं 30 जुलाई 2015 को बाल कल्याण समिति ने बच्चे की बेहतर परवरिश की वजह से उसे बुलंदशहर के रहने वाले एक दंपति को सौंप दिया था। बेटे ने भी अपनी मां की सजा माफ करने के लिए राष्ट्रपति से गुहार लगाई है और अपील की है।
2.हरियाणा का सोनिया कांड
जानाकरी के अनुसार सोनिया कांड, यह मामला 23, अगस्त 20021 का है. जिसमें विधायक रेलूराम पूनिया समेत 9 लोगों की हत्या कर दी गई थी. जिसका आरोप विधायक रेलूराम पूनिया की बेटी और दामाद पर लगा था. बेटी-दामाद ने विधायक पूनिया समेत उनकी दूसरी पत्नी कृष्णा, बेटी प्रियंका, बेटा सुनील, बहू शकुंतला, चार साल के पोते लोकेश, दो साल की पोती शिवानी और तीन महीने की प्रीती की बेरहमी से हत्या कर दी थी. मामले की जांच में दोनों को दोषी पाया गया था. इस मामले में हिसार कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे उम्र कैद में बदल दिया था. वहीं जब सुप्रीम कोर्ट में मामले की अपील हुई तो दोनों को दोबारा फांसी की सजा तो सुनाई गई लेकिन दया याचिका के आधार पर फांसी की सजा उम्रकैद में तब्दील हो गई थी।
3.देश में नहीं हुई किसी महिला को फांसी
शबनम ने अपनी दलील में यह बात भी कही है कि देश में किसी भी महिला को अभी तक फांसी नहीं हुई है. शबनम के अलावा सीरियल किलर दो बहनों रेणुका और सीमा को भी फांसी की सजा सुनाई गई है। दोनों बहनों के ऊपर 42 बच्चों के हत्या का दोष है। दोनों बहनें 24 साल से पुणे के यरवदा जेल में बंद हैं. इन्हें अभी तक सजा नहीं हुई है।